Chapter 1: अहंकारी राजकुमारी
राजमहल में एक अत्यंत सुंदर और अहंकारी राजकुमारी थी, जिसका नाम माया था। उसकी सुंदरता और अहंकार ने उसे अंधा कर दिया था। उसका नाम उसके अहंकार की मिसाल था।
Chapter 2: गुरु का अपमान
एक दिन, गुरुजी ने माया को धर्म और नीति की बातें सिखाने की कोशिश की, लेकिन उसने उन्हें अपमानित कर दिया।
Chapter 3: शिक्षा का स्मरण
गुरुजी ने एक स्लोक बोला: “अहंकारी होने से व्यक्ति अपने आपको हानि पहुंचाता है।” उन्होंने माया को एक पाठ सिखाया और उसे एक स्थितिप्रज्ञ बनाया।
Chapter 4: मूर्ति में बदलना
माया ने गुरुजी के शब्दों को अनदेखा कर दिया, और उसका परिणाम भुगतना पड़ा। वह एक पत्थर की मूर्ति में बदल गई।
Chapter 5: उद्धार
अंततः, एक महान योगी ने माया को उसकी मूर्ति की स्थिति से मुक्त किया और उसे सत्य का पथ दिखाया। माया ने सीखा कि अहंकार से केवल विनाश होता है।
Chapter 6: द्वीप की यात्रा
माया को उसकी मूर्ति की स्थिति से मुक्त करने के बाद, योगी ने उसे एक द्वीप पर ले गया जहां वह अपने अहंकार को दूर करने के लिए योग और ध्यान की प्रैक्टिस कर सकती थी।
Chapter 7: भैंस और नगर
द्वीप पर, माया ने एक भैंस को देखा जो अकेला था। वह समझ गई कि अहंकार ने उसे अकेला कर दिया है, और वह भैंस की तरह नहीं बनना चाहती थी।
Chapter 8: परिवर्तन
माया ने अपने अहंकार को दूर करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास किया। उसने सीखा कि सच्ची खुशी और शांति स्वयं के अंदर ही मिलती है।
Chapter 9: सत्य की खोज
माया की यात्रा ने उसे सत्य की ओर ले गई। वह समझ गई कि विनम्रता और समर्पण ही सच्चे शांति की कुंजी हैं।
Chapter 10: नई शुरुआत
अंत में, माया ने अपने अहंकार को त्याग दिया और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की। वह समझ गई कि अपने अहंकार को दूर करके ही वह सच्ची खुशी पा सकती है।